नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को अभी बरकरार रखने का निर्णय लिया है, हालांकि इस पर अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच के द्वारा सुनाया जाएगा। इस मामले में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने फैसला किया कि फिलहाल एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा यथावत रहेगा।
**अनुच्छेद 30 पर महत्त्वपूर्ण टिप्पणी**
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी धार्मिक समुदाय को शैक्षणिक संस्था स्थापित करने का अधिकार है, लेकिन इसे संचालित करने का अधिकार नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 30 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसे कमजोर नहीं किया जा सकता, भले ही संबंधित संस्थान संविधान लागू होने से पहले स्थापित किया गया हो। इस निर्णय का उद्देश्य देश के शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारों और उनके अल्पसंख्यक दर्जे को सुनिश्चित करना है।
**क्या होगी जामिया मिलिया इस्लामिया पर असर?**
साल 1968 में अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय माना था, लेकिन 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन कर इसे अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कर दिया गया था। इस फैसले का प्रभाव जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे अन्य विश्वविद्यालयों पर भी पड़ सकता है। अगर कोर्ट ने एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त किया तो इसमें एससी/एसटी और ओबीसी कोटा लागू किया जा सकता है, जिससे शैक्षणिक संस्थानों की मौजूदा संरचना में बदलाव आ सकता है।
**हाई कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार**
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2006 में अपने आदेश में एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। इसके बाद, 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय पीठ ने इस मुद्दे को सात-सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा। अब इस मामले की सुनवाई आठ दिनों तक चली और निर्णय फिलहाल सुरक्षित रखा गया है।
**संविधान पीठ का अहम सवाल**
मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में अहम सवाल उठाया कि किसी संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा कब दिया जाना चाहिए - केवल इसके संस्थापक के धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक होने के कारण, या इसके प्रशासन के आधार पर? यह निर्णय भारतीय शैक्षणिक प्रणाली में धार्मिक स्वतंत्रता और गैर-भेदभाव के अधिकार के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
**निष्कर्ष**
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला अभी अदालत में लंबित है, और इसके फैसले का व्यापक असर भारत की शैक्षणिक प्रणाली पर पड़ सकता है।