सत्य को जानने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है – श्री मोहन नागर
आदि गुरु शंकराचार्य के जीवन एवं दर्शन पर आधारित व्याख्यानमाला का आयोजन म.प्र. जन अभियान परिषद विकासखण्ड मनासा द्वारा कुकडेश्वर में किया गया जिसमें मंचासीन मुख्य अतिथि म.प्र. जन अभियान परिषद के उपाध्यक्ष (राज्यमंत्री दर्जा) श्री मोहन नागर, अध्यक्षता विधायक मनासा श्री अनिरूद्ध माधव मारू, विशेष अतिथि श्रीमती उर्मिला महेन्द्र पटवा अध्यक्ष नगर परिषद कुकडेश्वर, विजय शर्मा, मदन रावत मण्डल अध्यक्ष भाजपा, नरेंद्र मालवीय मनासा विधानसभा प्रभारी ने आदि गुरु शंकराचार्यजी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर व्याख्यान माला का शुभारंभ किया। जिला समन्वयक वीरेन्द्र सिंह ठाकुर ने स्वागत उदबोधन देकर परिषद की योजनाओं से परिचित कराया तथा विकासखण्ड समन्वयक महेन्द्रपाल सिंह भाटी ने शंकराचार्य व्याख्यानमाला आयोजन के उदेश्य एवं महत्व से अवगत कराया।
मुख्य अतिथि श्री मोहन नागर ने अपने उदबोधन में कहा कि शंकराचार्य ने ज्ञान को सबसे महत्वपूर्ण बताया था, उन्होंने कहा था कि व्यक्ति को अपने आप को जानने का प्रयास करना चाहिए, कर्मों से मुक्ति नहीं मिलती है, बल्कि ज्ञान से मुक्ति मिलती है, सत्य को जानने के लिए गुरु की आवश्यकता होती क्योंकि संसार में सुख नहीं है, बल्कि दुख है, व्यक्ति को अपने मन को शुद्ध करना चाहिए, आत्मा हर जीव की अलग अलग नहीं है, सब की एक ही आत्मा है। यह है एकात्मता, शंकराचार्य जी ने कहा था कि "अहम् ब्रह्मास्मि" अर्थात "मैं ब्रह्म हूँ" यह एक वैदिक महावाक्य है जो हमें हमारी आत्मा और ब्रह्मांड की एकता को याद दिलाता है, और हमें अपने सच्चे स्वरूप को जानने की ओर प्रेरित करता है। आदि गुरू ने हिंदु धर्म के प्रचार-प्रसार में अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। उन्होने कहा कि नासा के वैज्ञानिक गीता पढते हैं और उनकी वैदिक कक्षाएं लगती है , अपने घर में इनका चित्र अवश्य लगायें। साथ ही बताया कि हम आज जिस सनातन देश में बैठे हैं इस देश की रीति नीति और संस्कार को श्री आदि गुरु शंकराचार्य जी की वजह से ही संजीवनी मिली है,कनकधारा स्त्रोत मन्त्रों की रचना की। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा प्रदान किये गए नैतिक मूल्य एवं शिक्षा से ही मानव कल्याण संभव है, शंकराचार्य जी ने राष्ट्र को एकाकार करके एकात्म दर्शन को बतलाया है साथ ही संगठित भारत को एक नई पहचान दी इतने महान पुरुष का हमारे घरों में आज चित्र भी नहीं है आदिगुरु शंकराचार्य जी के विचारों को परंपराओं को आगे बढ़ना है, हम सब सौभाग्यशाली हैं कि उन्होंने मध्य प्रदेश में आकर के यहां तप किया। हमे शंकराचार्यजी के संदेशों को समझकर विश्व को एकात्मता के मार्ग पर लाना है।
विधायक श्री मारू ने कहा कि शंकराआचार्य छह वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। इनके संन्यास ग्रहण की कथा बड़ी विचित्र है। कहते हैं, माता एकमात्र पुत्र को सन्यासी बनने की आज्ञा नहीं देती थीं, तब एक दिन नदी किनारे एक मगरमच्छ ने शंकराचार्यजी का पैर पकड़ लिया तब इस वक्त का फायदा उठाते शंकराचार्यजी ने अपने माँ से कहा "माँ मुझे सन्यास लेने की आज्ञा दो नहीं तो हे मगरमच्छ मुझे खा जायेगा", इससे भयभीत होकर माता ने तुरंत इन्हें संन्यासी होने की आज्ञा प्रदान की और आश्चर्य की बात है कि, जैसे ही माता ने आज्ञा दी वैसे तुरन्त मगरमच्छ ने शंकराचार्यजी का पैर छोड़ दिया।
श्रीमती उर्मिला महेन्द्र पटवा अध्यक्ष नगर परिषद कुकडेश्वर ने कहा कि शंकराचार्य जी सन्यास के बाद ये कुछ दिनों तक काशी में रहे, और तब इन्होंने विजिलबिंदु के तालवन में मण्डन मिश्र को सपत्नीक शास्त्रार्थ में परास्त किया। इन्होंने समस्त भारतवर्ष में भ्रमण करके वेदिक धर्म को पुनरुज्जीवित किया, हमें इनके दर्शन को जन-जन तक पहुंचाना है।
कार्यक्रम में बोर्ड परीक्षा में सर्वाधिक अंक लाने वाले प्रतिभावान विद्यार्थियों का सम्मान भी अतिथियों द्वारा किया गया एवं जलगंगा संरक्षण अभियान अंतर्गत जल संरक्षण का संकल्प सभी को दिलाया। व्याख्यान माला में संरक्षक महेन्द्र पटवा, युगल व्यास, उज्जवल पटवा, लोकेश तुगनावत, जगदीश जगोलिया, लोकेश मोदी, संजय मारू सहित नवांकुर, प्रस्फुटन समितियों, मुख्यमंत्री नेतृत्व क्षमता विकास पाठ्यक्रम के विद्यार्थी एवं परामर्शदाता, स्वैच्छिक संगठन के पदाधिकारी, समाजसेवी एवं अन्य गणमान्य नागरिकों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का संचालन नवांकुर संस्था प्रभारी भगवती प्रसाद सोनी ने किया एवं आभार नगर प्रस्फुटन समिति अध्यक्ष तेजकरण सोनी ने किया।