शंखोद्धार महादेव इस वर्ष 2025में दर्शन नही देगें -2012 से 6 साल बाद याने 2018 -19 में शंखोद्धार महादेव नें दर्शन दिए थे किंतु वर्तमान मे गांधीसागर बांध का जलस्तर 1289 के लगभग है एवं अभी जून माह का अंतिम सप्ताह चल रहा है एवं अभी जनरेशन भी नही हो रहा है।।लगभग 1284 जलस्तर पर मंदिर में दर्शन होते है। लगभग 5 फिट पानी यदि जनरेशन भी हो तो जलस्तर कम होना 2024 जुलाई तक संभव नही हैं। अभी आधा मंदिर दिखाई दे रहा है।
गांधीसागर जलाशय व चंबल नदी की गोद मे स्थापित महाभारत कालीन प्राचीन मन्दिर शंखोद्वार महादेव का मंदिर पिछले 6 सालों से पानी मे डूबा हुआ है। ज्ञात रहे कि जब बांध का पानी अपनी पूरी लेवल पर होता है तो मन्दिर पर करीब 5 फिट पानी रहता है जबकि जमीन से मन्दिर की ऊंचाई भी 20 फिट के करीब है पिछले 7 साल से गांधीसागर बांध का जलस्तर ज्यादा कम नही हो रहा था मगर इस साल पानी खेमला प्लांट में पंप हाऊस के चलते लगभग 5 फीट पानी तोड़ा गया किन्तु इतना भी कम नही होगा कि जिसके चलते ऐतिहासिक मन्दिर के दर्शन हो सके ।बताया जाता है कि शंखोद्वार महादेव मंदिर में अकाल मृत्यु होने वाले मृत आत्माओं का तर्पण होता है ओर उनको मुक्ति मिलती है जब भी यह मंदिर पानी से बाहर आता है देश के कोने कोने से लोग असमय काल की ग्रास बने अपने परिजनों के मोक्ष की कामना लेकर यहां आते हैं और विधि विधान से उनका पिंड दान करते है बताया जाता है कि यहां महाभारत काल मे पांडवों ने अज्ञात वास बिताया था और उसी समय यहां पर भीम ने शंखासुर नामक राक्षस का वध किया था तब शंखासुर ने पांडवों से वरदान मांगा था कि आपके साथ मुझे भी इतिहास में याद किया जाए तब पांडवों ने यहां एक शिवलिंग की स्थापना की ओर उसका स्थान का नाम शंखोद्वार रखा ओर उसको वरदान दिया था कि अकाल मौत मरने वाली आत्माओं को यहां के सिवा कहि मोक्ष नही मिलेगा जिसका वर्णन महाभारत में भी आता है बताया जाता है यह शिवलिंग 6 माह जमीन के अंदर ओर 6 माह जमीन से एक फिट बाहर रहता है जो साक्षत चमत्कार है अविभाजित मन्दसौर जिले में बांध बनने से पहले यहाँ गंगामाता शंखोद्वार महादेव के नाम से विशाल मेला लगता था जिसकी ख्याति दूर दूर तक थी मगर आजादी के बाद 1950 में गांधीसागर बांध बनने के बाद हजारो गांव उजड़ गए और उसी के साथ यह स्थान भी इतिहास के पन्नो में गुम होगया तब से अब तक यहां जब जब भी यह मंदिर पानी से बाहर आता है तो कई भक्त गण दर्शन करने आते हैं। यहां रामपुरा से 25 किमी दूर दुधलई से देवरान ,चचोर लोटवास होकर अपने वाहन से पहुँचा जा सकता है।
कृष्णा गोस्वामी (चंबल रॉक्स गांधीसागर )
रिपोर्ट : कन्हैयालाल सोलंकी
धर्म : महाभारत युगीन मन्दिर है....अकाल मृत्यु वालो का होता है तर्पण
शंखोद्धार महादेव इस वर्ष 2025में दर्शन नही देगें -2012 से 6 साल बाद याने 2018 -19 में शंखोद्धार महादेव नें दर्शन दिए थे किंतु वर्तमान मे गांधीसागर बांध का जलस्तर 1289 के लगभग है एवं अभी जून माह का अंतिम सप्ताह चल रहा है एवं अभी जनरेशन भी नही हो रहा है।।लगभग 1284 जलस्तर पर मंदिर में दर्शन होते है। लगभग 5 फिट पानी यदि जनरेशन भी हो तो जलस्तर कम होना 2024 जुलाई तक संभव नही हैं। अभी आधा मंदिर दिखाई दे रहा है।
गांधीसागर जलाशय व चंबल नदी की गोद मे स्थापित महाभारत कालीन प्राचीन मन्दिर शंखोद्वार महादेव का मंदिर पिछले 6 सालों से पानी मे डूबा हुआ है। ज्ञात रहे कि जब बांध का पानी अपनी पूरी लेवल पर होता है तो मन्दिर पर करीब 5 फिट पानी रहता है जबकि जमीन से मन्दिर की ऊंचाई भी 20 फिट के करीब है पिछले 7 साल से गांधीसागर बांध का जलस्तर ज्यादा कम नही हो रहा था मगर इस साल पानी खेमला प्लांट में पंप हाऊस के चलते लगभग 5 फीट पानी तोड़ा गया किन्तु इतना भी कम नही होगा कि जिसके चलते ऐतिहासिक मन्दिर के दर्शन हो सके ।बताया जाता है कि शंखोद्वार महादेव मंदिर में अकाल मृत्यु होने वाले मृत आत्माओं का तर्पण होता है ओर उनको मुक्ति मिलती है जब भी यह मंदिर पानी से बाहर आता है देश के कोने कोने से लोग असमय काल की ग्रास बने अपने परिजनों के मोक्ष की कामना लेकर यहां आते हैं और विधि विधान से उनका पिंड दान करते है बताया जाता है कि यहां महाभारत काल मे पांडवों ने अज्ञात वास बिताया था और उसी समय यहां पर भीम ने शंखासुर नामक राक्षस का वध किया था तब शंखासुर ने पांडवों से वरदान मांगा था कि आपके साथ मुझे भी इतिहास में याद किया जाए तब पांडवों ने यहां एक शिवलिंग की स्थापना की ओर उसका स्थान का नाम शंखोद्वार रखा ओर उसको वरदान दिया था कि अकाल मौत मरने वाली आत्माओं को यहां के सिवा कहि मोक्ष नही मिलेगा जिसका वर्णन महाभारत में भी आता है बताया जाता है यह शिवलिंग 6 माह जमीन के अंदर ओर 6 माह जमीन से एक फिट बाहर रहता है जो साक्षत चमत्कार है अविभाजित मन्दसौर जिले में बांध बनने से पहले यहाँ गंगामाता शंखोद्वार महादेव के नाम से विशाल मेला लगता था जिसकी ख्याति दूर दूर तक थी मगर आजादी के बाद 1950 में गांधीसागर बांध बनने के बाद हजारो गांव उजड़ गए और उसी के साथ यह स्थान भी इतिहास के पन्नो में गुम होगया तब से अब तक यहां जब जब भी यह मंदिर पानी से बाहर आता है तो कई भक्त गण दर्शन करने आते हैं। यहां रामपुरा से 25 किमी दूर दुधलई से देवरान ,चचोर लोटवास होकर अपने वाहन से पहुँचा जा सकता है।