देह और संसार से मुक्ति का नाम ही मोक्ष है -सुप्रभ सागर जी मसा
SSE NEWS NETWORK (Neemuch) 31-10-2024 Devotional
एकाग्रता के भाव बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता है : वैराग्य सागर जी मसा.
नीमच : आत्मा की विशुद्धी से पुण्य की प्रकृति बढ़ती ही रहती है। तीर्थंकर से केवल ज्ञानी का आयुष कम होने के कारण वह तीर्थंकर से पहले मोक्ष चले जाते हैं। तीर्थंकर से प्रेरणा लेकर
हम पुण्य कर्म का पुरुषार्थ करें तो हमारी आत्मा का कल्याण भी हो सकता है।एकाग्रता का भाव लाए बिना आत्मा का कल्याण नहीं होता है।यह बात मुनि वैराग्य सागर जी महाराज ने कही। वे श्री सकल दिगंबर जैन समाज नीमच शांति वर्धन पावन वर्षा योग समिति नीमच के संयुक्त तत्वाधान में दिगंबर जैन मंदिर नीमच में शांति सागर शताब्दी वर्ष महोत्सव मेंआयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आत्म कल्याण के लिए तीर्थंकर भी 12 भावना का चिंतन करते हैं। गीता में भी 12 भावना का उल्लेख है। आत्मा का कल्याण करते समय स्वयं की आत्मा को नहीं भूलना चाहिए।मन को स्थिर कर आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष विजय विनायका जैन ब्रोकर्स , मीडिया प्रभारी अमन विनायका ने बताया कि प्रतिदिन सुबह आचार्य वंदना, मंगलाचरण, शास्त्र दान,चित्र अनावरण ,सहित विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किये जा रहे हैं।-सुप्रभ सागर जी महाराज साहब ने कहा कि दीपावली के दिन महावीर स्वामी ने देह से संसार को मुक्ति प्राप्त कर आत्मिक सुख को प्राप्त किया वह ऐसा आत्मिक सुख है जो अपूर्ण है। पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ ।हम अपूर्व सुख को प्राप्त करने के लिए प्रेरणा ले और अनंत काल के लिए अपनी आत्मा में लीन रहेंगे तो हमें भी मोक्ष मार्ग मिल सकता है ।भगवान महावीर स्वामी ने मुक्ति की प्राप्ति की। दिगंबर श्रवण परंपरा में साधुओं के चातुर्मास के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। चातुर्मास काल में साधक ग्रंथ अध्ययन व उपवास तप कर के अपनी साधना में लीन रहते हैं और कर्मों की निर्जरा करते हैं ताकि वे भी भगवान महावीर स्वामी के समान अपूर्व आध्यात्मिक सुख को प्राप्त कर सके ।जैन परंपरा के अनुसार दिवाली पर्व भगवान महावीर स्वामी के निवार्ण उत्सव एवं गौतम गणधर स्वामी के केवल ज्ञान प्राप्त करने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व पर दीप प्रज्जवलन का उद्देश्य यही है कि जिस प्रकार दीपक सब ओर प्रकाश फैलाता है उसी प्रकार हमारे जीवन का ज्ञान प्रकाश फैले और अज्ञानता का अंधकार नष्ट हो, वर्तमान में लोग धन का अपव्य पटाखे आदि फोड़कर करते हैं जिसके माध्यम से पक्षियों के जीव हिंसा के साथ बुजुर्गों को गंभीर बीमारी हृदय घात जैसी परेशानी होती है और पर्यावरण दूषित होता है।जैन दर्शन में दिवाली पर धन की नहीं, धर्म की महता का है इसलिए धनलक्ष्मी की नहीं, मोक्ष लक्ष्मी का पूजन का पुरुषार्थ किया जाता है।